20 से सीधे 50 करोड़! एक फैसले से बदल गई विकास की चाल

20 से सीधे 50 करोड़! एक फैसले से बदल गई विकास की चाल
  1. भूमिका: एक छोटी सी सीमा बन गई थी विकास की सबसे बड़ी रुकावट

मध्यप्रदेश में जब भी किसी बड़े प्रोजेक्ट की बात होती थी, तो एक आंकड़ा बार-बार बीच में आ जाता था — 20 करोड़ रुपए। जी हां, यही वो सीमा थी, जिसके बाद हर प्रस्ताव कैबिनेट की मंजूरी की कतार में फंस जाता था। नतीजा? देरी, अटकाव, लागत में इज़ाफा और जनता के धैर्य की परीक्षा।

अब सरकार ने इस पुरानी बाधा को तोड़ते हुए सचिवों के अधिकारों को 20 करोड़ से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपए तक कर दिया है। यानी अब विकास कार्यों को मिलने वाली मंजूरी में कैबिनेट की लेटलतीफी नहीं, बल्कि विभागीय सचिवों की त्वरित मुहर होगी।

  1. नया बदलाव क्या है? जानिए संक्षेप में

राज्य सरकार ने एक बड़ा प्रशासनिक कदम उठाते हुए यह नियम लागू किया है कि अब:

  • सचिव ₹50 करोड़ तक के प्रोजेक्ट को खुद मंजूरी दे सकेंगे।
  • पहले यह सीमा ₹20 करोड़ थी।
  • अब केवल वे प्रोजेक्ट जो ₹50 करोड़ से ऊपर होंगे, वे ही कैबिनेट के पास भेजे जाएंगे।

यह निर्णय सिर्फ सीमा का विस्तार नहीं, बल्कि विकास की प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाने की दिशा में एक क्रांतिकारी बदलाव है।

  1. क्या बदलेगा इस एक फैसले से?

अब कल्पना कीजिए कि किसी शहर में ₹45 करोड़ की लागत वाला अस्पताल बनना है। पहले उस प्रोजेक्ट को सचिव पास नहीं कर सकते थे। पूरी फाइल को कैबिनेट की मीटिंग का इंतज़ार करना पड़ता था। फाइलें महीनों टेबल पर पड़ी रह जाती थीं, और ज़रूरतमंद जनता इलाज का इंतजार करती रह जाती थी।

अब क्या होगा?

  • सचिव फ़ाइल देखते ही मंजूरी दे सकेंगे।
  • प्रक्रिया तेज़ होगी।
  • प्रोजेक्ट समय पर पूरे होंगे।
  • जनता को समय पर सुविधाएं मिलेंगी।
  1. किन विभागों को होगा सबसे ज़्यादा फायदा?

इस फैसले का सीधा असर उन विभागों पर पड़ेगा, जहां ₹20 से ₹50 करोड़ के बीच के प्रोजेक्ट अधिक आते हैं:

विभाग

संभावित लाभ

लोक निर्माण विभाग (PWD)

सड़क, पुल, बिल्डिंग्स की तेज मंजूरी

स्वास्थ्य विभाग

अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, PHC निर्माण

शिक्षा विभाग

स्कूल, लैब, छात्रावास का विकास

नगरीय प्रशासन विभाग

सीवरेज, स्मार्ट सिटी, पार्किंग प्रोजेक्ट

अब ये सभी विभाग सीधे अपने सचिव स्तर पर प्रस्तावों को क्लियर कर सकेंगे, जिससे इनकी कार्यक्षमता कई गुना बढ़ेगी।

  1. अब कैबिनेट पर नहीं होगा फाइलों का बोझ

कैबिनेट को अब सिर्फ ₹50 करोड़ से अधिक के प्रस्तावों को ही देखना होगा। इससे उनके पास:

  • समय की बचत होगी।
  • बड़े और रणनीतिक फैसलों पर फोकस किया जा सकेगा।
  • छोटे लेकिन ज़रूरी प्रोजेक्ट्स में देरी नहीं होगी।
  1. पारदर्शिता और जवाबदेही भी बढ़ेगी

इस निर्णय से अधिकारियों के पास ज्यादा अधिकार आए हैं, लेकिन इसके साथ ही जवाबदेही भी बढ़ गई है। अब:

  • गलत फैसले की ज़िम्मेदारी सचिव की होगी।
  • ट्रैकिंग सिस्टम से मॉनिटरिंग होगी।
  • मंजूरी की पूरी प्रक्रिया डिजिटली रिकॉर्ड होगी।

इससे भ्रष्टाचार पर रोक, स्पीड में इज़ाफा और भरोसा—तीनों मिलेगा।

  1. SFC, EPC और PSC को भी मिली मज़बूती

अब सिर्फ सचिव ही नहीं, बल्कि Standing Finance Committee (SFC), Empowered Project Committee (EPC) और Project Scrutiny Committee (PSC) को भी मजबूत किया गया है।

  • अब ये कमेटियाँ भी ₹50 करोड़ तक के प्रोजेक्ट्स पर अनुशंसा या मंजूरी दे सकेंगी।
  • इससे विभागीय स्तर पर तेज़ फैसले लिए जा सकेंगे।
  1. क्या अब प्रोजेक्ट्स समय पर पूरे होंगे?

सरकार का यही उद्देश्य है। बार-बार कैबिनेट भेजने से बचने से:

  • प्रोजेक्ट्स का काम 3-6 महीने पहले शुरू हो सकेगा।
  • लेबर, मशीनरी और संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा।
  • ठेकेदारों को भी समय पर भुगतान और काम मिलेगा।
  1. जनता को मिलेगा सीधा लाभ

आखिर में, इस फैसले का सबसे बड़ा फायदा आम जनता को मिलेगा। जब अस्पताल, स्कूल, सड़कें और अन्य परियोजनाएं समय पर पूरी होंगी, तो:

  • सुविधा बढ़ेगी
  • जीवन आसान होगा
  • जनता का सरकार पर विश्वास बढ़ेगा
  1. निष्कर्ष: छोटे फैसले, बड़ा असर

मध्यप्रदेश सरकार का यह फैसला दिखाता है कि प्रशासनिक सुधार केवल काग़ज़ों पर नहीं, बल्कि ज़मीन पर असर डाल सकते हैं। 20 से 50 करोड़ की मंजूरी सीमा का विस्तार विकास को नई रफ्तार देगा और सचिवों की भूमिका पहले से कहीं अधिक प्रभावी बनेगी।

अब देखना यह होगा कि विभागीय सचिव इस ताक़त का इस्तेमाल कितना ज़िम्मेदारी से करते हैं।

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